राजधानी देहरादून में लगातार बढ़ती वाहनों की भीड़ और सीमित पार्किंग स्थानों की समस्या से निपटने के लिए राज्य सरकार ने कुछ वर्ष पहले एक महत्वाकांक्षी योजना शुरू की थी। शहर के हृदय स्थल पर बनने वाली यह ग्रीन बिल्डिंग परियोजना न केवल 800 से अधिक वाहनों के लिए पार्किंग की सुविधा प्रदान करने वाली थी, बल्कि इसमें राज्य के कई प्रमुख सरकारी कार्यालयों को एक ही छत के नीचे लाने की भी योजना थी। यह भवन “ग्रीन बिल्डिंग” मानकों पर आधारित है, जिसका उद्देश्य ऊर्जा की बचत, पर्यावरण-मित्र निर्माण और टिकाऊ शहरी विकास को बढ़ावा देना था। योजना के अनुसार, निर्माण कार्य अक्टूबर 2025 तक पूर्ण होना था, परंतु अब हालात यह हैं कि परियोजना का केवल 30प्रतिशत काम ही पूरा हुआ है, जबकि अधिकांश हिस्सों में अब भी खुदाई और नींव का कार्य चल रहा है।इस धीमी रफ्तार ने न केवल परियोजना की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है, बल्कि यह भी सवाल खड़ा कर दिया है कि इस सार्वजनिक निवेश की जवाबदेही आखिर कौन लेगा।

लागत बढ़ी, लाभ अधर में

ग्रीन बिल्डिंग परियोजना की शुरुआती लागत ₹188 से ₹206 करोड़ के बीच निर्धारित की गई थी। परंतु वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए यह लागत अब और बढ़ने की संभावना है। निर्माण में देरी के चलते सरकार को अतिरिक्त व्यय का सामना करना पड़ सकता है।

यदि परियोजना तय समय में पूरी होती, तो इसके माध्यम से राजधानी को कई बड़े लाभ मिलते 

पार्किंग संकट से राहत: 800 से अधिक गाड़ियों की आधुनिक पार्किंग सुविधा से शहर के मध्य क्षेत्र में जाम की स्थिति में कमी आती।

वाहन अव्यवस्था में सुधार: अवैध और सड़क किनारे पार्किंग पर रोक लगती, जिससे ट्रैफिक सुचारु रहता।

हरित भवन से पर्यावरणीय लाभ: ऊर्जा की बचत, बेहतर वेंटिलेशन और पर्यावरण-संवेदनशील डिज़ाइन से स्थायी विकास को बढ़ावा मिलता।

प्रशासनिक दक्षता में सुधार: सभी प्रमुख सरकारी विभागों के एक भवन में आने से जनता को भी सुविधा मिलती।

लेकिन कार्यदायी संस्था की सुस्ती और विभागीय ढिलाई के कारण यह पूरा विज़न अभी अधर में लटका है।

अनुमति जून की खुदाई नवंबर में

परियोजना की प्रगति पर नया विवाद उस वक्त खड़ा हुआ जब यह पता चला कि खुदाई और मिट्टी हटाने की अनुमति जिलाधिकारी सविन बंसल द्वारा जून महीने में दी गई थी, जबकि वर्तमान में नवंबर माह में भी मशीनों से फाउंडेशन की खुदाई और दीवारों को सपोर्ट देने का काम जारी है।

हालांकि, निर्माण एजेंसी ने आपदा प्रबंधन विभाग से मिट्टी धंसने के बाद सुधार कार्य की अनुमति मांगी थी, जिसे जिलाधिकारी ने स्वीकृत कर दिया। इसके बावजूद सवाल यही बना हुआ है कि — क्या ठेकेदार संस्था को समयसीमा से अधिक मोहलत दी गई? क्या निरीक्षण व्यवस्था कमजोर पड़ी? और क्या देरी के कारणों का गंभीर मूल्यांकन हुआ है?

विधायक ने जताई नाराजगी, मांगी रिपोर्ट

स्थानीय विधायक खजान दास ने शुक्रवार को निर्माण स्थल का निरीक्षण किया और कार्यदायी संस्था की लापरवाही पर कड़ी नाराजगी जताई। उन्होंने स्पष्ट कहा कि यदि तय समयसीमा का पालन नहीं हुआ, तो ठेकेदार का अनुबंध निरस्त किया जाएगा।

खजान दास ने संबंधित विभागों और स्मार्ट सिटी अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि वे निर्माण की गति बढ़ाएं, पारदर्शिता बरतें और अब तक की प्रगति की रिपोर्ट सार्वजनिक करें — इसमें यह भी स्पष्ट किया जाए कि कितनी राशि खर्च हुई, कितनी बकाया है और शेष काम कब तक पूरा होगा।

उन्होंने यह भी कहा कि वे इस विषय पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से सीधे वार्ता करेंगे ताकि परियोजना को समय पर पूरा करने के ठोस निर्देश जारी किए जा सकें।

सवाल बरकरार

राजधानी की यह “ग्रीन बिल्डिंग” कभी देहरादून के स्मार्ट सिटी मॉडल की शान बनने वाली थी, मगर अब यह सुस्ती और लापरवाही का उदाहरण बन गई है। 30 प्रतिशत काम पर अटकी यह परियोजना जनता की उम्मीदों पर पानी फेरती दिख रही है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *