आजकल, बजट स्मार्टफोन्स में भी वर्चुअल रैम का सपोर्ट मिलने लगा है। स्मार्टफोन कंपनियाँ इसे एक महत्वपूर्ण फीचर के रूप में बताकर फोन की बिक्री को बढ़ावा देती हैं। इससे रैम की क्षमता में वृद्धि होती है और यह सुनने में भी आकर्षक लगता है। अर्थात, अगर किसी बजट फोन में 4GB रैम होती है, तो वर्चुअल रैम के जरिए फोन की कुल रैम 8GB हो जाती है। लेकिन अब सवाल यह है कि क्या वर्चुअल रैम से वास्तविक फोन की परफॉर्मेंस पर असर पड़ता है या नहीं? आइए इस विषय पर विचार करें।
वर्चुअल रैम सिस्टम को एक स्तर तक अतिरिक्त रैम का आवंटन जरूर करता है, लेकिन यह फिजिकल रैम के बराबर परफ़ोर्म नहीं कर सकती। इसलिए, हमें वर्चुअल रैम और फिजिकल रैम के बीच कुछ महत्वपूर्ण अंतरों को समझने की आवश्यकता है। वर्चुअल रैम का उपयोग करने से कुछ लाभ होते हैं, लेकिन इसके बावजूद, कुछ बातों का ध्यान रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- परफॉर्मेंस इंपैक्ट: स्टोरेज को वर्चुअल रैम के रूप में उपयोग करने पर एक्सटैंडेड रैम की स्पीड फिजिकल रैम की तुलना में कम होती है। ऐसा होने पर, किसी भी डिवाइस में वर्चुअल रैम का उपयोग करने के बाद भी आपको फिजिकल रैम की तरह की स्पीड नहीं मिलेगी।
- स्टोरेज स्पेस: जब आप फोन में मौजूद स्टोरेज को वर्चुअल रैम के रूप में उपयोग करते हैं, तो अन्य फाइलों के लिए स्टोरेज कम हो जाता है। इसलिए, आपको ध्यान रखना होगा कि आपको आपकी फाइलों के हिसाब से कितनी रैम की आवश्यकता है।
- फोन कर सकता है लैग: फिजिकल रैम की तुलना में, वर्चुअल रैम कम फ्रिक्वेन्सी वाली होती है। जब सिस्टम में फिजिकल रैम पूरी यूज मे आ जाती है और नई फ़ाइल को ओपेन करने के लिए रैम समाप्त हो जाती है, तो वर्चुअल रैम का उपयोग किया जाता है। इसके कारण एक्सेस टाइम बढ़ जाता है और सिस्टम में थोड़ा लैग देखने को मिल सकता है।
- आपको यहां यह भी जानना चाहिए कि फोन में वर्चुअल रैम देने का कोई फायदा नहीं होता है, यह कहना गलत होगा। वास्तव में, वर्चुअल रैम के उपयोग से कुछ हद तक बेहतर मल्टीटास्किंग, और थोड़ा अधिक परफॉर्मेंस की संभावनाएं होती हैं। अगर आप बिना वर्चुअल रैम के और वर्चुअल रैम के साथ मे मल्टी-टास्किंग करते हो तो वर्चुअल रैम के साथ मे आपको भले ही थोड़ा सा लेकिन फर्क जरूर मिलेगा। इसीलिए ये फीचर कुछ हद तक काम का तो है।
- इसे बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ा कर बताना और अधिक महत्व देना सही नहीं है क्योंकि वर्चुअल रैम को फिजिकल रैम का पूरा रिप्लेसमेंट नहीं माना जा सकता है। इसके साथ ही, फिजिकल रैम की हाइ-फ्रिक्वेन्सी की उम्मीद वर्चुअल रैम से नहीं की जा सकती है।
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